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भगवान शंकर का अपमान करने के लिए राजा दक्ष प्रजापति ने किया था महायज्ञ का आयोजन : वासुदेवाचार्य

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अम्बेडकरनगर: आलापुर क्षेत्र के वाभनपुर ग्राम में चल रही श्रीराम कथा के दौरान कथावाचक ने शिवचरित्र एवं शिव विवाह प्रसंग को श्रोताओं को सुना कर मंत्र मुग्ध किया।मुख्य अतिथि अपर महाधिवक्ता कुलदीप पति त्रिपाठी व जिला विद्यालय निरीक्षक प्रवीण कुमार तिवारी ने कहा कि अपने जीवन को संतुलित और सुखी बनाने के लिए भक्ति मार्ग पर चलने का आह्वान किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता पंडित राम अवध स्मारक इंटर कॉलेज रामनगर के प्रधानाचार्य एनवी यादव व बार अध्यक्ष सुनीति द्विवेदी ने किया।
संगीतमयी श्रीराम कथा के दूसरे दिन शुक्रवार की संध्या कालीन वेला में कथा व्यास वासुदेवाचार्य महाराज ने शिव चरित्र का सुन्दर वर्णन किया, व्यास ने मां पार्वती के जन्म, कामदेव के भस्म होने और भगवान शिव द्वारा विवाह के लिए सहमत होने की कथा सुनाई। कथा व्यास वासुदेवाचार्य महाराज ने श्रोताओं को सुनाते हुए कहा कि राजा दक्ष प्रजापति ने भगवान शंकर का अपमान करने के लिए महायज्ञ का आयोजन किया था। जिसमें उसने भगवान शिव को छोड़कर समस्त देवताओं को आमंत्रण भेजा था। भगवान शंकर के मना करने के बाद भी सती अपने पिता के यहां जाने की इच्छा जताई तो भगवान शंकर ने बिना बुलाए जाने पर कष्ट का भागी बनने की बात कही।


इसके बाद भी सती नहीं मानी और पिता के घर चली गईं. पिता द्वारा भगवान शंकर के अपमान पर सती ने हवन कुंड में कूदकर खुद को अग्नि में समर्पित कर दिया. इसके बाद भगवान शंकर के दूतों ने यज्ञ स्थल को तहस-नहस कर दिया।माता सती के अग्नि में प्रवाहित होने के बाद तीनों लोकों को भगवान शिव के कोप भाजन का शिकार होना पड़ा। कथा व्यास ने कहा कि इससे हमें यह सीख मिलती है कि कभी भी कोई भी आयोजन किसी को नीचा दिखाने के लिए नहीं करना चाहिए। किसी को अपमानित करने की उद्देश्य नहीं करना चाहिएअन्यथा वह आयोजन वह कार्य कभी सफल नहीं होगा।
कथा के मर्म को बताते हुए कथा व्यास ने सती के क्रोध और संदेश को बताया. कहा, पिता द्वारा भगवान शंकर के अपमान पर सती ने क्रोध करते हुए उस यज्ञ में उपस्थित सभी से कहा कि “संत संभू श्रीपति अपवादा सुनहीं जहां तहां असी मरजादा काटिय तासु जीव जो बसाई। श्रवण मूदी न त चलिय पराई।” योगा “अर्थात संत की भगवान शिव की और श्रीपति विष्णु के जहां पर निंदा हो रही हो उसे कभी सुनना नहीं चाहिए। यहां तो निंदा करने वाले की जीव काट देना चाहिए अन्यथा वहां से अपने कान बंद करके चले जाना चाहिए.।इस सभा में जिसने भी भगवान शंकर की निंदा सुनी है उन सभी को इसका परिणाम भोगना होगा और यह कह कर योगाग्नि में स्वयं मा ने स्वयं को भस्म कर दिया।इसके बाद भगवान शंकर के दूतों ने यज्ञ स्थल को तहस-नहस कर दिया।माता सती के अग्नि में प्रवाहित होने के बाद तीनों लोकों को भगवान शिव के कोप भाजन का शिकार होना पड़ा। उन्होंने कहा उसके बाद माता सती ही मां पार्वती के रूप में अवतरित हुई कठोर तपस्या को करते हुए माता पार्वती ने शिवजी का वर्णन किया अर्थात पुनः शिव जी को प्राप्त कर लिया।भूत भावन भगवान शिव के विवाह जैसा व्यवहार ना तो भूतकाल में कभी हुआ था और ना ही कभी भविष्य काल में होगा। ऐसा अद्भुत विवाह भगवान भूत भावन भगवान शंकर का यहां पर वर्णन किया गया। बाद भगवान शंकर के दूतों ने यज्ञ स्थल को तहस-नहस कर दिया। माता सती के अग्नि में प्रवाहित होने के बाद तीनों लोकों को भगवान शिव के कोप भाजन का शिकार होना पड़ा।
उसके बाद माता सती ही मां पार्वती के रूप में अवतरित हुई कठोर तपस्या को करते हुए माता पार्वती ने शिवजी का वर्णन किया अर्थात पुनः शिव जी को प्राप्त कर लिया. भूत भावन भगवान शिव के विवाह जैसा व्यवहार ना तो भूतकाल में कभी हुआ था और ना ही कभी भविष्य काल में होगा। ऐसा अद्भुत विवाह भगवान भूत भावन भगवान शंकर का यहां पर वर्णन किया गया।कथावाचक ने शिव-पार्वती के विवाह को समर्पण, भक्ति और संयम का प्रतीक बताया। श्रोताओं को अपने जीवन को संतुलित और सुखी बनाने के लिए भक्ति मार्ग पर चलने का आह्वान किया।
भाव विभोर हुए श्रोता
इस कथा को सुनने के बाद श्रोता भाव-विभोर हो गए और उन्होंने कथा का भरपूर आनंद लिया। इस अवसर पर पूर्व जिलाध्यक्ष डॉ मिथिलेश त्रिपाठी ,जिला मंत्री विनय पांडे जिला मंत्री पंकज वर्मा उपस्थित रहे। समिति के अध्यक्ष आर एस गौतम कोषाध्यक्ष माया अग्रहरि ने अतिथि जनों का स्वागत किया।

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