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अम्बेडकरनगर: टाण्डा तहसील क्षेत्र के अरसावां गांव में मरहूम (स्वर्गीय) मोहम्मद अली की मजलिसे चेहलुम का आयोजन सोशल डिस्टेंस के साथ किया गया। मजलिस की शुरुआत तेलावत ए कलाम पाक (पवित्र कुरआन के मंत्रोचारण) से हुई। पहली मजलिस को शिया धर्म गुरु मौलाना सैय्यद सुल्तान हुसैन प्रिंसिपल जामा ए इमाम मेंहदी आज़मगढ़ ने सम्बोधित करते हुए कहा कि इमाम हुसैन अलि. की शहादत दुनिया मे सच्चाई की जीत का प्रतीक है। दस मोहर्रम को हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने दीन को बचाने के लिए कर्बला में भूखे-प्यासे संघर्ष करते हुए शहादत दिया और समाज में सच्चाई, नमाज़, रोज़ा व क़ुरआन व नेकी को कायम रखा है। उनकी शहादत किसी एक ख़ास कौम के लिए नहीं, बल्कि तमाम इंसानियत के लिए थी। मौलाना ने कहा कि इमाम हुसैन सभी मज़हब के लोगों को आपस में प्रेम भाव से रहने एवं समय पड़ने पर एक दूसरे की मदद करने की बात कही। इंसान को इंसान से प्रेम का भाव हमेशा रखना कर्बला वालों ने दी है। वहीं दूसरी मजलिस को छपरा बिहार से आये विश्व प्रख्यात शेरे बिहार मौलाना सैय्यद अली अब्बास रिज़वी ने मजलिस को सम्बोधित करते हुए कहा कि हज़रत इमाम हुसैन ने कर्बला में शहादत देकर पूरी दुनिया को इंसानियत का पैग़ाम दिया है। यही वजह है कि पूरी दुनिया में समाज के सभी वर्गों के लोग उन्हें तहेदिल से याद करते है। इमाम हुसैन अगर कर्बला की जंग में अपनी कुर्बानी न देते, तो आज न तो कोई इंसान इंसानियत को पहचान पाता और न ही कुरान व इस्लाम बाकी रह जाता। हज़रत इमाम हुसैन ने अपनी और अपने साथियों की कुर्बानी देकर इंसानियत और कुरआन को बचाने का काम किया और पूरी क़ायनात को ज़ालिम यज़ीद के ज़ुल्म से बचाने का काम किया। मौलाना ने कहा कि आतंकवाद के लिए किसी धर्म और मज़हब में कोई जगह नहीं है। जो लोग इस्लाम के नाम पर आतंकवाद फैला रहे हैं, वे हकीकत में मुसलमान ही नहीं हैं। इस्लाम इत्तेहाद व भाईचारे का पैग़ाम देता है। यदि इंसानियत नहीं पायी जाती तो कोई धर्म और मज़हब का वजूद नहीं होता। एक ज़माना आएगा। जब इस दुनिया में आख़िरी इमाम आएंगे जो ज़ुल्म के ख़िलाफ़ अपनी आवाज़ बुलंद करेंगे। और उस समय अद्ल व इंसाफ होगा। इमाम हुसैन ने दुनिया को बताया कि सबसे बड़ा धर्म इंसानियत का धर्म है। जिसके अंदर इंसानियत है वो ज़िल्लत की ज़िन्दगी से बेहतर इज़्ज़त की मौत पसंद करते हैं। इमाम हुसैन ने कर्बला के मैदान में जो कुर्बानी दी वो इंसानियत और इंसान को बचाने के लिए दी। उनके किरदार से यह बात साबित होती है कि सच्चाई के लिए जो जान माल और अपने बच्चो को भी कुर्बान करता है। तो वह हमेशा याद बन कर लोगों के ज़हन में हमेशा ज़िन्दा रहता है। यही वजह है कि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को केवल मुसलमान ही नहीं बल्कि हिन्दू, सिख, ईसाई सभी देवता स्वरूप मानते हैं। अंत मे मौलाना ने हज़रत इमाम हुसैन की कर्बला मे हुई दर्दनाक शहादत बयान करना शुरू किया तो मजलिस मे मौजूद मोमनीन की आंखे नम हो गई।

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