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अम्बेडकरनगर: टाण्डा नगर क्षेत्र निवासी व व टाण्डा तहसील के वरिष्ठ अधिवक्ता दिलीप मांझी ने सोशल मीडिया के फेसबुक प्लेटफार्म पर अपना दर्द साझा करते हुए सरकारी फाइलों की गोपनीयता पर गंभीर सवाल उठाया है। श्री मांझी के दर्द का समर्थन वरिष्ठ पत्रकार आज़म अंसारी ने कमेंट बॉक्स में करते हुए समूह ग की भर्ती ना होने के कारण समस्या अधिक बढ़ गई है और लोग भी चन्द पैसों में काम करवाने में खुश हो जाते हैं।


वरिष्ठ अधिवक्ता समाजसेवी दिलीप मांझी ने जो लिखा है उसे हम हूबहू कॉपी कर रहे हैं। उन्होंने लिखा कि–

भूजा छोर(सत्य घटना पर आधारित)——-
पुरानी बात है। अलीगंज धुरियहिया में थिएटर लगा था। मैंने कभी नही देखा था। मेरे पत्रकार मित्र आजम अंसारी और सूर्यभान जी थिएटर देखने मोटर साइकिल से जा रहे थे…..। मैं रास्ते में मिल गया। पत्रकार मित्र ने कहा,अबे चल थिएटर दिखा लाएं। मै बोला ठीक है। मै कभी देखा नहीं हूं,चलो देख ही आता हूं। मै भी कानून तोड़ते हुए उनकी मोटर साइकिल पर बैठ कर ,दीवाने मस्ताने की तरह चल दिया।टिकट तो लगना नही था क्योंकि आजम भाई जो साथ में थे….हम तीनो थिएटर में प्रवेश किये और मैंने आजम से बोला कि मुझे थिएटर के अंदर क्या होता है उसे दिखा दो।वह मुझे अंदर लेकर गए जहां डांसर डांस करने के लिए तैयार होती है वहां से सीधे वह स्टेज पर आती थी….।
मैने जो देखा दंग रह गया…डांसर जो डांस के दौरान इनाम पाती थी …उसके लिए अंदर छिन्नी छोर्रा करती दिखी….मुझे बड़ा आघात पहुंचा। स्टेज पर जो चकाचौंध दिखता था अंदर एकदम उल्टा था…।मैने एकाद से बात भी किया नाचने का कारण पूछा सबकी कोई न कोई मजबूरी ……?
ठीक आजकल तहसीलों में भी ऐसे ही  मजबूरी दिख रहा है….। चार अदालतों पर दो पेश कार एक तो बीमार ही रहते हैं। कंप्यूटर आपरेटर सभी अदालतों पर प्राइवेट बिना लिखा पढ़ी के…सिस्टम इन्ही के  सहारे…राम भरोसे चाट भंडार की तरह….यदि DM साहेब या बड़े अधिकारी का मुआयना लग गया तो ये सब बिना सींग के खहरहा की तरह सरपट गायब…. फाइलों की गोपनीयता भी राम भरोसे….।
वकीलों पर रोब ऐसा झाड़ते हैं जैसे डिप्टी कलेक्टर और तहसीलदार यही हों। काम के बदले पैसे की छीनना छोर्री, भुजा छोर की तरह… हो भी क्यों न हो ? सबके सब बिना लिखा पढ़ी । बिना मानक के। अगूंठा छाप नेताओं की तरह….। अब कोई तनख्वाह तो सरकार देती नही।सरकार ही जब हरामखोरी पर उतर आई तो  अवैध निजी कर्मचारी तो मनमानी करेंगे ही ,आखिर उनका भी तो खर्च है , परिवार है।
जब सरकार ही गांधी जी के तीन बंदर की तरह हो गई है तो सिस्टम में खराबी आना लाजिमी है और अवैध निजी कर्मचारी तो भूजा छोर हो ही जाएंगे….। का करियै कोई  हमार।जबाब देही तो है नही —–। विचारणीय (दिलीप मांझी एडवोकेट)।

उक्त पोस्ट के कमेंट बॉक्स में वरिष्ठ पत्रकार आज़म अंसारी ने जो लिखा उसे भी हम हूबहू पेश कर रहे हैं। श्री अंसारी ने लिखा कि–
तहसील व सरकारी कार्यलय याब थियेटर हो गए हैं जब से टी वी आया तो कुछ थियेटरों व सिनेमा घरों का गेराफ़ गिरा लेकिन जब से हाई टेक मोबाइल सबके हाथों में आ गया तो थियेटरों की अहमियत कम हो गयी अब जो छीनिक छोर्रा आप ने थियेटर में दिलीप जी देखा था वह अब तहसीलों व सरकारी कार्यालयों में देखिये ।उसका भी सबसे मुख्य कारण है जो समूह ग की भर्ती नही हो रही है जिला मुख्यालय कलेक्ट्रेट व जनपद की 5 तहसीलों में कुल 64 या 65 कर्मचारी बचे हैं उनमें भी अधिकांश मृतक आश्रित है जो बिना किसी मेहनत के नोकरी पा गये हैं।यदि प्राइवेट कर्मी जिन्हें सरकारी भाषा मे अजीर कहा जाता है वही पूरा जिला चला रहे है।क्योंकि वेतन पाने वाला कुछ करना ही नही चाहता है वह सारा काम अजीरों से करवाता है।यही हाल पूरे प्रदेश की है प्राइवेट कर्मी हर जगह मौजूद हैं चाहे वह न्यायालय ही क्यों न हो।सब सरकार की कमी है।लोग यही सोच कर चुप हो जाते हैं कि चलो कुछ रुपया देने उनका काम हो जाता है। नही तो आप दौड़ते रहिए।
अधिवक्ता परवेज़ अख्तर ने भी कमेंट में लिखा कि “आखिर आप ने तहसील टांडा वैसे आज कल सभी कचेहरियो मे यही हो रहा है आपने पोल खोल अभियान चला ही दिया है वैसे मैंने इस विषय में एक आर.टी.आई काफी दिन से पूँछ रख्खा है लेकिन जवाब का अभी इंतज़ार कर रहा हूँ।”
बहरहाल सरकारी कार्यालयों में प्राइवेट कर्मचारियों द्वारा पीड़ितों से की जा रही लूटपाट के सम्बंध में वरिष्ठ अधिवक्ता व समाजसेवी दिलीप मांझी ने सोशल मीडिया पर दर्द साझा किया जिससे सूचना न्यूज़ टीम ने हूबहू आपके समक्ष पेश किया है और आगे भी सोशल मीडिया पर जनहित के मुद्दों पर उठने वाले सवालों व दर्द को साझा किया जाएगा।