अम्बेडकरनगर: केंद्र सरकार द्वारा गत दिनों श्रम कानूनों में संसोधन करने से आक्रोशित आप पार्टी के पदाधिकारियों व कार्यकर्ताओं ने लॉकडाउन का पालन करते हुए अपने अपने आवासों पर संसोधन कानून की प्रतियां जला कर विरोध दर्ज कराया। आप पार्टी के सोशल मीडिया प्रदेश परचम अब्बास ने भी अपने अकबरपुर आवास पर संसोधित श्रम अधिनियम की प्रतियां जला कर विरोध दर्ज कराया।
श्री अब्बास ने कहा कि कोरोना संकट से निपटने के लिए लगाए गए लॉकडाउन को करीब दो महीने होने जा रहे हैं, लॉकडाउन की वजह से उद्योग-धंधे ठप हैं, देश और राज्य की अर्थव्यवस्था पूरी तरह से बर्बाद हो रही है। उद्योगों को पटरी पर लाने के आड में देश के छह राज्य अपने श्रम कानूनों में कई बड़े श्रमिक विरोधी बदलाव कर चुके हैं।
श्रम कानूनों में बदलाव की शुरूआत राजस्थान की गहलोत सरकार ने काम के घंटों में बदलाव को लेकर किया, इसके बाद फिर मध्य प्रदेश की शिवराज सरकार ने बदलाव किया तो 7 मई को उत्तर प्रदेश और गुजरात ने भी लगभग 3 साल के लिए श्रम कानूनों में बदलावों की घोषणा कर दी। अब महाराष्ट्र, ओडिशा और गोवा सरकार ने भी अपने यहां श्रमिक विरोधी बदलाव कर दिए हैं।
राज्य सरकारों द्वारा औद्योगिक विवाद अधिनियम और कारखाना अधिनियम, ‘पेमेंट ऑफ वेजेज एक्ट 1936’ सहित प्रमुख अधिनियमों में संशोधन किए हैं. ट्रेड यूनियन एक्ट 1926 को 3 साल के लिए रोक दिया गया है। श्रमिकों के 38 कानूनों में बदलाव किये है जिससे आई एल ओ कन्वेंशन 87, सामूहिक सौदेबाजी का अधिकार (आई ओ एल कन्वेंशन 98), आई ओ एल कन्वेंशन 144 और साथ ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृत आठ घंटे के कार्य दिवस का घोर उल्लंघन हो रहा है।
राज्य सरकारें हवाला दे रही है कि कोविड-19 के चलते उद्योग सेक्टर अत्यधिक दबाव में है । जहां आज भी मुख्य हाईवे रोड मजदूर लोग देश के अलग-अलग प्रदेशों से अपने अपने प्रदेश गांव शहर पैदल पैदल चलते देखे जा सकते हैं जहां एक और कोरोना वायरस की मार से पूरा देश जल रहा है वही दूसरी ओर राज्य सरकारें उद्योगों की हिस्सेदारी को लेकर चिंतिंत नजर आ रही है, लेकिन श्रमिकों की उद्योगों में योगदान का कोई जिक्र नहीं किया जा रहा है।
जैसा की ज्ञात है श्रमिक एक अनपढ़ व्यक्ति नहीं होता है आईटीआई, वोकेशनल ट्रेनिंग , हायर सेकेंडरी करने के पश्चात अर्ध-कुशल ,कुशल एवं उच्च -कुशल को श्रमिक विभाग के नियमानुसार किसी भी उद्योग या ठेकेदारी प्रथा में नौकरी दी जाती है अब जिस प्रकार राज्य सरकारों ने श्रमिक नियमों में उद्योगों को बढ़ावा देने का हवाला देते हुए नियमों को शिथिल किया है उससे श्रमिक वर्ग पूरी तरह उद्योगपतियों एवं ठेकेदारी प्रथा के हाथों की कठपुतली बन जाएगा, क्योंकि राज्य सरकारों ने उन तमाम प्रावधानों को समाप्त कर दिया है जिसके माध्यम से उद्योगपतियों ठेकेदारी प्रथा के हाथों पीड़ित होने पर श्रम न्यायालय एवं न्यायालय की शरण में जा सकता था।
प्राप्त जानकारी के अनुसार उद्योगपतियों को नियमों के जरिए उद्योग बढ़ावा देने के लिए श्रमिकों से अब 8 घंटे की जगह शिफ्ट को 12 घंटे का कर दिया है। उद्योगपतियों को यह छूट दी जा रही है कि वह सुविधा के अनुसार पाली (शिफ्ट) में भी बदलाव कर सकते हैं जिस प्रकार कानून में संशोधन किया गया है। उससे यह स्पष्ट प्रतीत होता है कि राज्य सरकारों का यह निर्णय पूर्णता: श्रमिक विरोधी है इसे लागू होने से श्रमिकों के अधिकारों का हनन होगा।
राज्य सरकारों द्वारा लेबर कानून के बदलाव से मुख्य संभावित खतरे पैदा हो गए हैं।
1. उद्योगों को सरकारी व् यूनियन की जांच और निरीक्षण से मुक्ति देने से कर्मचारियों/ श्रमिकों का शोषण बढ़ेगा।
2. शिफ्ट व कार्य अवधि में बदलाव की मंजूरी मिलने से कर्मचारियों / श्रमिकों को बिना साप्ताहिक अवकाश के प्रतिदिन 8 घंटे से ज्यादा काम करना पड़ेगा । जो कि 8 घंटे काम के एक लम्बी लड़ाई के बाद प्राप्त हुए थे।
3.श्रमिक यूनियनों को मान्यता न मिलने से कर्मचारियों / श्रमिकों के अधिकारों की आवाज कमजोर होगी और पूंजीपतियों का मनमानापन बढ़ेगा . मजदूरों के काम करने की परिस्थिति और उनकी सुविधाओं पर ट्रेड यूनियन कि दखल /निगरानी खत्म हो जाएगी।
4. उद्योग-धंधों को ज्यादा देर खोलने से वहां श्रमिकों को डबल शिफ्ट करनी पड़ेगी जिससे शोषण बढ़ेगा।
5. पहले प्रावधान था कि जिन उद्योग में 100 या ज्यादा मजदूर हैं, उसे बंद करने से पहले श्रमिकों का पक्ष सुनना होगा और अनुमति लेनी होगी. अब ऐसा नहीं होगा. इससे बड़े पैमाने पर श्रमिकों का शोषण बढ़ेगा | उद्योगों में बड़े पैमाने पर छंटनी और वेतन कटौती शुरू हो सकती है।
6. अब कानून में छूट के बाद ग्रेच्युटी देने से बचने के लिए उद्योग, ठेके पर श्रमिकों की हायरिंग बढ़ा सकते हैं। जिससे बड़ी संख्या में बेरोजगारी बढ़ेगी।
7-मालिक श्रमिकों को उचित वेंटिलेशन, शौचालय, बैठने की सुविधा, पीने का पानी, प्राथमिक चिकित्सा बॉक्स, सुरक्षात्मक उपकरण, कैंटीन, क्रेच, साप्ताहिक अवकाश और आराम के अंतराल प्रदान करने के लिए बाध्य नहीं होंगे, जो कि श्रमिकों के मूल अधिकार थे। उक्त जानकारियां आप पार्टी के सोशल मीडिया प्रदेश प्रभारी परचम अब्बास ने उपलब्ध कराई है।