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सर चढ़कर बोल रहा है कोरोना का भय – बग्गा ने किया हेलाल मियाँ का अंतिम संस्कार

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अम्बेडकरनगर: वैश्विक महामारी कोरोना का भय आम लोगों के सर चढ़कर बोल रहा है। कोरोना संक्रमण से होने वाली मृत्यु के बाद उनके अंतिम संस्कार में भी शामिल होने से परहेज किया जा रहा है। सेवाहि धर्म: टीम पूरी सावधानी के साथ पास्टिव शवों का अंतिम संस्कार करने में जुटी हुई है।
ताज़ा मामला विश्व प्रसिद्ध दरगाह किछौछा शरीफ से कूद अहम है जहां के प्रसिद्ध सूफी संत सैय्यद हेलाल अशरफ उर्फ हेलाल मियाँ की लखनऊ में कोरोना पास्टिव के इलाज़ के दौरान मृत्यु हो गई थी और उनका पार्थिक देह किछौछा दरगाह में उनके गेस्ट हाउस पर लाया गया तो कोरोना संक्रमण के भय के कारण अधिकांश लोगों ने किनारा कस लिया। एम्बुलेंस से शव पहुंचने की सूचना पर वरिष्ठ समाजसेवी धर्मवीर सिंह बग्गा अपनी सेवाहि धर्म: टीम के साथ पहुंच गए और मृतक हेलाल मियाँ के पुत्र सैय्यद बेलाल अशरफ व सैय्यद कमाल अशरफ के साथ कंधे से कंधा मिला कर अंतिम रस्म अदा किया। हेलाल मियाँ के करीबियों से वार्ता की गई तो पता चला कि अधिकांश लोग क्वारन्टीन हैं तथा काफी लोग कोरोना संक्रमण के भय के कारण अंतिम रस्म में शामिल नहीं हुए। बताते चलेंकि किछौछा निवासी 70 वर्षीय सैय्यद हेलाल अशरफ उर्फ हेलाल मियाँ के काफी संख्या में हिन्दू व मुस्लिम मुरीद है तथा अपने सरल व्यवहार को लेकर किछौछा शरीफ के आसापास काफी प्रसिद्ध भी थे तथा गैर जनपदों व गैर प्रदेशों में उनके मुरीदों की संख्या बहुयात है।
वरिष्ठ समाजसेवी धर्मवीर सिंह बग्गा ने इसे सन्त सेवा के रूप में अपने फेसबुक वॉल पर उक्त घटना को विस्तृत रूप से लिखा है जिसे हम हु बहु कॉपी कर नीचे पेस्ट कर रहे हैं।
करोना पोस्टिव अंतिम संस्कार की सेवा
दोपहर में फ़ोन आया बग्गा जी बोल रहे है, जी बोल रहा हूँ।
मैं छोटे बाबू दरगाह से बोल रहा हु आप कैसे है, महादेव की कृपा है।
एक करोना पोस्टिव की अंतिम संस्कार (मिट्टी) करनी है क्या आप हमारी मदद करेंगे।
जी, ज़रूर करूँगा, ये सेवा तो वाहेगुरु ने हमें दे रखी है कब और कहाँ करनी है।
जी, बॉडी लखनउ से निकलने वाली है दरगाह में होनी है लगभग रात के 10 बजेगे, मैं आपको निकलने के बाद और फ़ैज़ाबाद पहुँचने पर बता दूँगा।
जी ठीक है हम तैयारी करते है। धूप बहुत तेज़ थी मैंने सरफराज को काल किया, फ़ोन उठाते ही बोले जी भैया, आवाज़ से लगा वो सो रहे थे। सरफ़राज एक करोना पोस्टिव अंतिम संस्कार करना है। बिना कुछ पूछे बोला ‘मैं आ रहा हूँ’।
मैं बोला, भाई अभी नहीं रात में—- ठीक इसी तरह कुछ पवन ने जबाब दिया।
शाम 8 बजे फ़ोन आया की एम्बुलेन्स फ़ैज़ाबाद पहुँच गयी है आप लोग— हम तैयार है।
रात 10:30 पर हम आरदास कर घर से निकले, पवन को फ़ोन किया कि हम निकल रहे है। भैया हम प्रमोद और सब लोग तैयार बैठे है।
हम रात 11.15 दरगाह शरीफ़ पहुँच गये।
वहाँ पहुँचने पर हमें मालूम चला की इनका नाम सैयद हेलाल अशरफ़ है, संत स्वरूप बहुत नेक इंसान है, इनके मानने वाले मुरीद हज़ारों में हैं।
एक संत की सेवा ले रहा है ईश्वर …
रात 12 बजे के क़रीब एम्बुलेंस उस महान सखसियत को ले कर पहुँची … बा अदब प्रणाम कर अरदास की फिर उनकी मिट्टी की सेवा …. उनके बेटे ने साथ सेवा करते समय जब ये कहा की भाई बहुत नाम सुनता था आज अपनी आँखो से देख लिया। जब छोटे बाबू ने ये बताया कि आपसे बात हो गयी है तो ये लगा अब सब कुछ ठीक से हो जयेगा जैसा चाहते थे …. एक अजीब सकूँन दिल को लगा कि ओह वाहेगुरु तू क्या विश्वास लोगों में डाल रहा है … कृपा बनाए रखना हम सब पर …

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