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कर्बला के शहीदों को पुरसा देने का सिलसिला जारी – या हुसैन की सदाओं से गूंज रहा है अज़ाख़ना

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अम्बेडकरनगर (रिपोर्ट: आलम खान एडिटर) विश्व की ऐतिहासिक व मार्मिक जंग कर्बला के शहीदों को मोहर्रम की पहली तारीख से ही पुरसा देने का सिलसिला शुरू हुआ जो लगातार जारी है। इमाम बारगाहों व अजाखानों से या हुसैन की सदायें उठ रही हैं तथा लगातार नौहाख्वानी, सीनाजनी के साथ अलम व ताबूत इमाम बरगाहों में बरामद किए जा रहे हैं।
इस्लामिक कैलेंडर के प्रथम माह की पहली तारीख से ही इस्लाम के अंतिम संदेष्टा (पैगम्बर) हज़रत मोहम्मद सल्ल. के नवासे व फात्मा ज़हरा के लाल हज़रत इमाम हुसैन सहित मार्मिक जंग कर्बला के शहीदों सभी शहीदों को पुरसा देने का सिलसिला जारी है। विशेष रूप से शिय समुदाय के घरों में बने अज़ाखानों में अलम व ताबूत बरामद किए जा रहे हैं तथा सिनाज़नी व नौहाख्वानी के साथ मजलिसों के माध्यम से पुरसा दिया जा रहा है। घरों के अज़ाखानों में महिलाएं की भी मजलिस, मातम व नौहखानी लगातार जारी है।
याद दिलाते चलेंकि पैगम्बर हज़रत मोहम्मद साहब सल्ल. की बेटी हज़रत फात्मा ज़हरा के लाल हज़रत इमाम हुसैन को कूफ़ा वासियों द्वारा बैय्यत (समर्पण/आस्था) प्रकट करने के लिए आमंत्रित किया गया था जिसके लिए हज़रत इमाम हुसैन अपने परिवार व साथियों के साथ मदीना से कूफ़ा के लिए सफर शुरू किया और कूफ़ा से पहले नहर फरात के किनारे अपने खेमा लगा दिया लेकिन 2 मोहर्रम को तत्कालीन क्रूर बादशाह यज़ीद की फौज-ए-अश्किया ने बल पूर्वक खेमा हटवा दिया और हज़रत इमाम हुसैन के निर्देश पर खेमा हटा भी लिया गया क्योंकि इमाम हुसैन किसी भी कीमत पर जंग नहीं चाहते थे। नहर से खेमा हटवाने के बाद नहर पर फौजे अश्किया ने पहरा लगा दिया और इमाम हुसैन व उनके साथियों को पानी लेने से मना कर दिया। मौजूद जमा पानी भी सातवीं मोहर्रम को समाप्त हो गया तो इमाम हुसैन के भाई मौला अब्बास जो काफी बलवान थे वो पानी लेने के लिए निकलने लगे लेकिन इमाम हुसैन ने उनसे तलवार रखवा लिया और कहा कि हम जंग नहीं चाहते हैं। दसवीं मोहर्रम को बिना तलवार लिए पानी लेने निकले मौला अब्बास को क्रूर यज़ीद की ज़ालिम फ़ौज ने शहीद कर दिया हालांकि पूरी फौज मौला अब्बास से खौफ खाती थी।
मार्मिक कर्बला की जंग में 06 माह के मासूम अली असगर को भी नहीं बख्सा गया और एक एक कर सभी को शहीद कर दिया गया।
ऐतिहासिक जंग कर्बला के बारे में ये शेअर काफी उचित है कि “क़त्ल-ए-हुसैन अस्ल में मर्ग-ए-यज़ीद है” “इस्लाम ज़िंदा होता है हर कर्बला के बाद”। उक्त जंग में इमाम हुसैन सहित उनके 72 साथियों को पुरसा देने का सिलसिला अनवरत जारी है। अज़ाखानों से या हुसैन की सदायें लगातार गूंज रही है। मजलिसों सहित नौहाख्वानी, सीनाजनी का दौर भी जारी है।

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