पवित्र सरयू तट (घाघरा नदी) के किनारे आबाद औद्योगिक बुनकर नगरी टाण्डा की एक प्राचीन ऐतिहासिक पृष्ठभूमि रही है। इतिहास के पन्नों को पलटें तो मुगल सम्राट की इच्छा के अनुसार 1714 ईस्वी में घाघरा नदी के किनारे बंजर पड़ी भूमि पर एक सभ्यता बसाने का संकेत मिलता है। ब्रिटिश सैनिकों से लोहा लेकर देश को आजाद कराने में भी टाण्डा क्षेत्र वासी तनिक भी पीछे नहीं रहे हैं। मौजूदा दौर में दो लाख से अधिक आबादी वाले इस शहर में पुरुषों की संख्या 53 % व महिलाओं की संख्या 47 % ही है। राष्ट्रीय साक्षरता औसत जहां 59.5 % है वही टाण्डा की आवश्यकता 61% है तथा पूरी जनसंख्या का 16% संख्या 6 वर्ष से कम आयु के बच्चों की है।
औद्योगिक शहर टाण्डा पूरे देश ही नहीं बल्कि विश्व स्तर पर भी ‘टाण्डा टेरीकाट’ के सस्ते कपड़ों के लिए काफी प्रसिद्ध है।
कई दशकों पूर्व यहाँ करघा के सहयोग से सस्ता कपड़ा तैयार किया जाता था लेकिन 1960 के दशक में बिजली आने के बाद कपड़ा उद्योग में एक नई क्रांति सी आ गई और पावर लूमों के माध्यम से लूंगी, गमछा, अरबी रुमाल, शर्ट, कुर्ता, अस्तर, मटका, डाभी आदि के कपड़े तैयार होने लगे तथा आज यहाँ की कई प्रसिद्ध कपड़ा कंपनियां देश के निर्माण में अपना महत्वपूर्ण योगदान देती नजर आ रही हैं। छज्जापुर में पुरानी कपड़ा मंडी है जो प्रत्येक शनिवार को पहली पाली में सजाई जाती है जिसमें आस पास के क्षेत्रों के अतिरिक्त काफी दूर दराज से भी व्यापारी आते हैं।
ब्रिटिश शासन से ही यहां नगर पालिक का भव्य कार्यालय मौजूद है। स्व.हाजी हयात मोहम्मद ने काफी वर्षों तक पालिकाध्यक्ष की कुर्सी पर आसीन रह कर इतिहास रचने का काम किया। मौजूदा दौर में सपा नेत्री नसीम रेहाना अन्सारी पालिकाध्यक्ष की कुर्सी पर आसीन हैं। नगर पालिका द्वारा वर्षों पूर्व गन्दे पानी की निकासी के लिए सीवर लाइन बनाई गई थी जो निष्क्रिय हो गई है। क्षेत्र का एक मात्र स्लॉटर हाउस भी अपनी दुर्दशा के कारण निष्क्रिय हो चला है। नगर पालिका प्रशासन द्वारा चिकित्सा व शिक्षा के क्षेत्र में कोई कार्य नहीं किया जाता है। पालिका प्रशासन मात्र जल सप्लाई, पानी निकासी, स्ट्रीट लाइट, निर्माण व कर उसूली तक ही सीमित हो कर रह गई है।
देश के विद्युत उत्पादन में अग्रणी कंपनी नेशनल थर्मल पावर कारपोरेशन (एनटीपीसी) ने भी टाण्डा में अपना निवेश किया और 440 मेगावाट (110×4) क्षमता का विद्युत उत्पादन लगातार चला रहा है तथा इसको विस्तार करते हुए 660 मेगावाट उत्पादन की नई यूनिट निर्माणाधीन है जिसके माध्यम से अतिशीघ्र काफी विद्युत प्राप्त होने लगेगी। औद्योगिक प्रतिष्ठानों में जेपी सीमेंट ने भी क्षेत्र में अपना कदम जमाते हुए बड़ी सीमेंट फैक्ट्री स्थापित किया जो अब अल्ट्राटेक के अधीन संचालित हो रही है। एनटीपीसी व सीमेन्ट फैक्ट्री से स्थानीय मज़दूरों को लाभ मिल रहा है।
सत्ता के गलियारों में भी ऐतिहासिक प्राचीन क्षेत्र टाण्डा ने अपनी अलग पहचान बना रखी है और नित नया इतिहास कायम करती नजर आ रही है। बसपा-सपा गठबंधन सरकार में कैबिनेट शिक्षा मंत्री रहे डॉक्टर मसूद एवं बसपा सरकार में वित्त एवं संसदीय कार्य मंत्री रहे लाल जी वर्मा इसी मिट्टी से रंगे हुए हैं।
महामाया राजकीय एलोपैथिक मेडिकल कॉलेज व होबर्ट त्रिलोकनाथ पोस्ट ग्रेजुएट कालेज सहित कई इण्टर व मध्यवर्ती कालेज व महिला डिग्री कालेज संचालित हो रहे हैं। सीबीएससी पैटर्न पर आधारित कई विद्यालय शिक्षा सेवा प्रदान कर रहे हैं। क्षेत्र में दारुल उलूम मदरसा मंज़रे हक व दारुल उलूम मदरसा कंजुल उलूम के अतिरिक्त कई मदरसे संचालित हो कर धार्मिक शिक्षा दे रहे हैं।
स्वास्थ्य विभाग द्वारा आसोपुर में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र संचालित हो रहा है जबकि क्षेत्र के विभिन्न स्थानों पर छोटे बड़े कई प्राइवेट नर्सिंग होम भी अपनी चिकित्सीय सेवा दे रहे हैं जहां पर ऑपरेशन की भी सुविधाएं उपलब्ध है। महामाया मेडिकल कॉलेज में भी चिकित्सीय सेवा दी जा रही है जहां पर लग्जरी ऑपरेशन थीएटर भी उपलब्ध है। क्षेत्र में सरकारी होम्योपैथिक व आयुर्वेदिक चिकित्सीय सेवा भी संचालित हो रही है। महिलाओं व बच्चों के लिए काफी बड़े स्तर पर सरकारी अस्पताल निर्माणाधीन है। एनटीपीसी के आवासीय परिसर में भी अस्पताल स्थापित है। गर्भवती महिलाओं व बच्चों की चिकित्सा के लिए कई प्राइवेट चिकित्सक कार्य कर रहे। चिकित्सा क्षेत्र में एमडी डॉक्टर खालिद कमाल अंसारी की सेवा काफी सराहनीय चल रही है।
औद्योगिक बुनकर नगरी में कच्चा माल लाने एवं तैयार कपड़ों को बाहर सप्लाई करने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है हालांकि इस क्षेत्र में कई ट्रांसपोर्ट कंपनियां कार्य कर रहे हैं। यात्रियों को आवागमन के लिए काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। देर शाम वाराणसी में बुनकर नगरी पहुंचना टेढ़ी खीर साबित होता है हालांकि कई प्राइवेट वाहनों द्वारा लखनऊ गोरखपुर आजमगढ़ मऊ आदि के लिए प्राइवेट बसों को संचालित किया जाता है जो स्थानीय लोगों को काफी राहत पहुंचा रही है।
सरकारी बस स्टेशन काफी बड़े स्थान में होने के बावजूद आज तक इसे डिपो तक नहीं बनाया गया और ना ही यहां समय से बसों का संचालन विभिन्न स्थानों के लिए होता है जिससे यात्री प्राइवेट वाहनों की तलाश में नज़र आते रहते हैं।
टांडा रेलवे स्टेशन होने के बावजूद यात्रियों के लिए कोई भी ट्रेन नहीं चलाई जाती है। उक्त रेलवे लाइन को मात्र एनटीपीसी व सीमेंट फैक्ट्री के कच्चे माल ढोने में इस्तेमाल किया जाता है। रेलवे सेवा के लिए यहां के लोगों को 20 किलोमीटर दूर अकबरपुर जंक्शन या 60 किलोमीटर दूरी पर स्थित फैज़ाबाद जंक्शन जाना पड़ता है। टाण्डा से कटेहरी रेलवे स्टेशन के बीच मात्र 10 किलोमीटर की नई रेलवे लाइन बिछाने की मांगे काफी पुरानी है लेकिन राजनीतिक गलियारों में ये चीखें दब कर रह जाती है हालांकि अगर टाण्डा-कटेहरी को रेलवे मार्ग से जोड़ दिया जाए तो ऐतिहासिक शहर के विकास में चार चांद लग जायेगा। हवाई यात्रा के लिए यहां से 185 किलोमीटर दूर लखनऊ या लगभग 200 किलोमीटर दूर वाराणसी जाना होता है।
गंगा जमुनी तहजीब की नई मिसाल पेश करने वाली बनकर नगरी में ईद, बकरीद, मोहर्रम, जश्ने ईद मिलादुन्नबी आदि पर्व सहित होली, दीपावली, दुर्गा पूजा, लक्ष्मी पूजा, छठ पूजा आदि त्योहार काफी हर्षोल्लास से मनाया जाता है। सिख समुदाय द्वारा महाराज गुरु नानक देव जी के प्रकाशोत्सव पर भव्य झाँकियाँ निकाली जाती है। लगभग सभी पर्वों को सभी धर्मों के लोग साथ मिल कर मनाते नज़र आते हैं।
हिन्दू मुस्लिम एकता का प्रतीक सूफी संत हजरत मखदूम अशरफ सिमनानी की प्रसिद्ध दरगाह किछौछा में दीपावली के अवसर पर अघन्या मेला में लाखों की भीड़ उमड़ती है एवं अलीगंज में स्थित प्राचीन दरगाह हारुन रशीद का वर्षिक मेला तथा हक्कानी साहब की दरगाह तलवापार में वार्षिक उर्स मेला सहित दशहरा व दुर्गा पूजा का प्रसिद्ध मेला आयोजित होता है। ऐतिहासिक दधिकांदो मेला का आयोजन नगर क्षेत्र में रात्रि में होता है जिसमें काफी भीड़ उमड़ती है और उस दौरान काफी सख्त सुरक्षा व्यवस्था भी होती है।
बुनकर नगरी टाण्डा में सामाजिक सेवा देने वालों की भी कमी नहीं है। वर्षों से गरीब असहाय बेटियों का सामूहिक विवाह कराने तथा लावारिश शवों का अंतिम संस्कार करने वाले धर्मवीर सिंह बग्गा का नाम सबसे ऊपर है। चिकित्सा, शिक्षा व अन्य सामाजिक कार्यों में कई प्रमुख्य संस्थाएं अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रही है जिसमें हेल्प प्वाइंट एनजीओ, हेल्पिंग हैंड, पंख, सहयोग आदि प्रमुख रूप से शामिल है।
मैनचेस्टर सिटी के रूप में प्रख्यात टाण्डा नगर में 24 घण्टे पावर लूमों की आवाजें आती रहती है। यहां का मुख्य कारोबार पावर लूम से ही जुटा हुआ है जिसके कारण काफी दुकाने पूरी-पूरी रात खुली रहती है। यहां कोई बड़ा होटल तो नहीं है लेकिन खाने व ठहरने के लिए कई छोटे एवं आरामदायक होटल मौजूद हैं। मदरसा मंज़रे हक द्वारा मुस्लिम मुसाफिर खाना भी संचालित किया जा रहा है।
अदब क्षेत्र में टाण्डा का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। इस मिट्टी ने कई बड़े प्रख्यात शायरों को भी स्थान दिया है जिसमें प्रसिद्ध शायर मजरूह सुल्तानपुरी, फैय्याज टाण्डवी, मास्टर अतीक अहमद, शराफत हुसैन व हास्य शायर आरिफ़ शोला टाण्डवी,युवा शायर खालिद टाण्डवी आदि भी शामिल हैं। कवियों की भी टाण्डा क्षेत्र में कमी नहीं है। युवा कवि अजय प्रताप श्रीवास्तव का नाम प्रमुख है। अदब क्षेत्र में सराहनीय कार्य होते रहते है तथा समय समय पर राष्ट्रीय स्तर पर मुशायरा व कवि सम्मेलन का आयोजन होता है।
बुनाई व्यवसाय से जुटे होने के कारण अधिकांश मज़दूर तबका पान, तम्बाकू, गुटका व बीड़ी सिगरेट के नशे में जकड़ा हुआ है लेकिन अब धीरे-धीरे काफी लोग खतरनाक नशे की चपेट में आ कर अपना जीवन भी बर्बाद कर रहे है। बुनकर क्षेत्र में स्मैक जैसे जानलेवा नशे ने अपना कदम जमा रखा है जिसके खिलाफ हेल्प-प्वाइंट एनजीओ स्थानीय लोगों के सहयोग से लगातार अभियान चला रहा है।