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बारात लेकर मिथिला पहुँचे राजा दशरथ-विवाह उपरान्त हुआ कन्यादान

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अम्बेडकरनगर: नगर पालिका परिक्षेत्र के मोहल्लाह मुबारकपुर में पंडित हरिश्चन्द्र मिश्र के संयोजन में पावन सरयू तट पर चल रहे श्री राम कथा में कथा वाचिका चन्द्रकला ने भगवान श्री राम के विवाह प्रसंग का बहुत ही सुन्दर वर्णन किया।
श्री राम कथा के पंचम दिन कथा वाचक चन्द्रकला ने भगवान श्री राम के विवाह का रसपान कराते हुए कहा किमि कहहुं बखानी, गिरा अनयन नयन बिनु बानी, नगर दर्शन के उपरान्त प्रभु अनुज लक्ष्मण के संग गुरु के पूजनार्थ पुष्प चयन करने जनक जी के वाटिका की तरफ चलें। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने अपने जीवन में हर छोटी सी छोटी मर्यादा का पालन किया। पुष्प वाटिका में प्रवेश से पूर्व प्रभु ने माली से अनुमति लेने के बाद वाटिका में प्रवेश किया। वाटिका में सूर्यवंशी प्रभु श्री राम को देखकर अविकसित कलियां भी खिल उठी। प्रत्येक पुष्प के हृदय में यही भावना है कि मैं प्रभु की सेवा में आ जाऊँ। उसी समय मां सीता का भी वाटिका में प्रवेश होता है। एक सखी समूह से अलग हुई। प्रभु की छवि देखते ही भाव विह्वल अवस्था में वापस आयी और सभी सखियों के संग मां जानकी को प्रभु के दर्शन कराने ले चली। वाटिका में राम – सीता के दर्शन के प्रसंग पर गीतों ने लोगों को मोहित कर लिया। प्रभु श्री राम को देखते ही मइया ने ठाकुर जी को अपने नेत्रों के द्वार से मन रूपी मंदिर में लाकर विराजमान कर दिया। तत्पश्चात इस भय से कि प्रभु जिस मार्ग से भीतर आये हैं। उसी मार्ग से बाहर न चले जाये। अतएव मइया ने अपने पलकों के किवाड़ बन्द कर लिया और मन ही मन परमानन्द से ओतप्रोत हो मॉ जानकी प्रभु के प्रेम में विलीन रही। वाटिका से दोनों भाई पुष्प लेकर गुरू के पास आये और मां जानकी ने गौरी पूजन किया। कथा वाचिका चन्द्रकला ने कहा कि गुरु के साथ दोनों भाई सीता स्वयंवर के लिये चले। मिथिला के लोगों ने जब सुना कि दोनों भाई रंगभूमि में पधारे हैं तो सभी प्रभु के दर्शन के लिये पंहुचे। स्वयंवर सभा में आये विभिन्न देशों के राजाओं व राजकुमारों द्वारा शिव धनुष का मन न भंग कर पाने पर प्रभु ने शिव धनुष का मन भंग किया। मंगलगान के बीच सीता ने श्री राम के गले में वरमाला डाल कर उनका वरण किया। गुरु विश्वामित्र के कहने पर राजा जनक अयोध्या नरेश दशरथ के पास विवाह का संदेश भेज बारात लेकर जनक पुर आने का निमंत्रण भेजा। राजा दशरथ बारात लेकर मिथिला पंहुचे। कथा मंच पर सबसे पहले आयोजक मंडल के पंडित प्रफुल्ल चन्द्र मिश्र ने कन्या दान किया। उसके बाद उपस्थित श्रोताओं ने क्रम बद्ध होकर कन्यादान किया। कन्यादान के साथ राम सीता का विवाह सम्पन्न हुआ। आरती व प्रसाद वितरण के साथ कथा का समापन हुआ। इस अवसर पर रमापति त्रिपाठी, वेदप्रकाश त्रिपाठी, सन्तोष पाण्डेय, उर्मिल मांझी, कुसुमलता, मधुबाला, राधिका उपाध्याय, अनूप यादव सहित सैकड़ों की संख्या में लोग उपस्थित रहे।

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