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टाण्डा घंटाघर के जीर्णोद्धार में हो गया बड़ा खेल, शिकायत पर ठेकेदार के बचाओ में खड़ी हो गई नगर पालिका

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टाण्डा घंटाघर के जीर्णोद्धार में हो गया खेल, शिकायत पर ठेकेदार के बचाव में खड़ी हो गई नगर पालिका

60 दिन में कार्य पूरा करने का हुआ था अनुबन्धन लेकिन दो साल बाद भी कार्य अधूरा

आंसू बहाने पर मजबूर है ऐतिहासिक धरोहर घंटाघर, 13 लाख 57 हज़ार रुपये में होना था सौन्दरीकरण लेकिन हो गया बड़ा खेल

अम्बेडकरनगर: औद्योगिक बुनकर नगरी टांडा के चौक में स्थित प्राचीन ऐतिहासिक धरोहर घंटाघर को बचाने एवं सुंदर बनाने के लिए नगर पालिका टांडा के बोर्ड ने भारी भरकम बजट पास किया लेकिन मात्र प्लास्टर कर इतिश्री कर लिया गया। उक्त निर्माण कार्य की अनियमितता व सम्बन्धित ठेकेदार की जब संभ्रांत नागरिकों द्वारा शिकायत हुई तो नगर पालिका प्रशासन ठेकेदार के पक्ष में खड़ा हो गया जिससे चर्चा होने लगी कि उक्त अनियमितता के बड़े खेल में नगर पालिका की भी कहीं ना कहीं शामिल है।


बताते चलेंकि डॉक्टर अंकित श्रीवास्तव ने मुख्यमंत्री से शिकायत करते हुए बताया कि टांडा चौक में स्थित घंटाघट के सौन्दरीकरण व जीर्णोद्धार कार्य को 13 लाख 57 हज़ार रुपये की लागत से दो वर्ष पूर्व मात्र 60 दिन में वर्ष ऋतु से पहले पूरा करने के लिए ठेकेदार से अनुबन्धन किया गया था जिसमें घंटाघट की नई छत का भी निर्माण होना था लेकिन सम्बन्धित ठेकेदार द्वारा मात्र प्लास्टर कर इतिश्री कर लिया गया। श्री अंकित द्वारा की गई शिकायत पर नगर पालिका सम्बन्धित ठेकेदार के बचाव पक्ष में खड़ी हो गई जिसकी पुनः शिकायत श्री अंकित द्वारा मुख्यमंत्री पोर्टल पर की गई है। नगर पालिका प्रशासन घंटाघर के निर्माण में देर होने का कारण भीड़ भाड़ वाला स्थान होना बताया जा रहा है जो हास्यपद नज़र आता है। नगर पालिका प्रशासन की माने तो संबंधित ठेकेदार को नोटिस भी जारी की गई है लेकिन 60 दिन का काम दो साल बाद भी पूरा ना होने के बाद भी नगर पालिका सम्बन्धित ठेकेदार के बचाओ पक्ष में खड़ा है जबकि डॉक्टर अंकित श्रीवास्तव की मांग है कि नियम व शर्तों के उलंघन करने वाली उक्त कार्यदायी संस्था की सिक्युरिटी ज़ब्त करते हुए ब्लैकलिस्टेड की कार्यवाही होनी चाहिए। डॉक्टर अंकित श्रीवास्तव ने बताया कि सम्बन्धित ठेकेदार प्रभावशाली है और शिकायत होने पर नगर पालिका के अधिकारियों व कर्मचारियों को प्रभाव में लेकर अपने पक्ष में रिपोर्ट लगवा कर जिलाधिकारी ही को नहीं बल्कि प्रदेश के मुख्यमंत्री को भी भ्रमित करता है। उन्होंने सम्बन्धित ठेकेदार सहित गलत कार्यों में सहयोग करने वाले नगर पालिका कर्मियों पर भी कार्यवाही की मांग किया है।
बहरहाल टांडा चौक में स्थित ऐतिहासिक घंटाघाट की बदहाली समाप्त होने का नाम नहीं ले रही है, लाखों रुपयों की स्वीकृति के बाद भी मात्र चन्द रुपयों में कार्य को इतिश्री कर लिया गया जो खुली आँखों मे धूल झोंकने जैसा है और शिकायत करने पर नगर पालिका प्रशासन भी उच्च अधिकारियों को भ्रमित करने वाली रिपोर्ट पेश कर सम्बंधित कार्यदायी संस्था के बचाओ पक्ष में खड़ी हो जा रही है जबकि वास्तव में 60 दिन के अंदर कार्य पूरा करने का अनुबन्धन पर 700 से अधिक दिन बीत जाने के बाद कार्यदायी संस्था पर कार्यवाही क्यों नहीं हुई ये क्षेत्र में भी चर्चा का विषय बना हुआ है।

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