नई दिल्ली: धर्म परिवर्तन कराने के मामले में मीडिया द्वारा चलाई जा रही खबरों से नाराज़ जमीयतुल उलेमा ए हिन्द ने नाराज़गी प्रकट करते हुए मीडिया को नसीहत दिया है कि उमर गौतम प्रकरण पर अदालत से पहले स्वयं जज ना बने बल्कि न्यायालय का सम्मान करते हुए जो भी निर्णय आए उसके बाद अपना फैसला सुनाए।
जमीयत उलमा ए हिंद के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना महमूद मदनी की तरफ से जारी बयान में कहा गया है कि जिस तरह से मौलाना उमर गौतम और अन्य को जबरन धर्म परिवर्तन के आरोप में गिरफ्तार किया गया है, और जिस तरह से मीडिया उन्हें प्रस्तुत कर रहा है वह निंदनीय है। उन्होंने कहा कि अल्पसंख्यकों और कमजोर वर्गों के मामले में, मीडिया द्वारा न्यायाधीश बनना और उन्हें अपराधी के रूप में पेश करना आम हो गया है। अतीत में, तब्लीगी जमात के प्रति भी ऐसा ही रवैया अपनाया गया था। इसका नतीजा यह होता है कि जिन लोगों पर आरोप होते हैं, उन्हें और उनसे जुड़े लोगों को काफी नुकसान उठाना पड़ता है और बाद में जब अदालतें उन्हें बरी कर देती हैं तो मीडिया खामोश हो जाती है।
जमीयत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष ने कहा कि हर किसी को अदालत न्याय पाने का अधिकार है इससे कोई भी वंचित नहीं रह सकता है। इसलिए जमीयत उलमा-ए-हिंद ने उमर गौतम के बेटे अब्दुल्ला गौतम के अनुरोध पर उनके मामले को आगे बढ़ाने का फैसला किया है। मौलाना मदनी ने कहा कि अगर उन्होंने कुछ गलत किया है तो उनके लिए सजा तय करना कोर्ट का काम है, कोर्ट से हटकर कोर्ट बनना और दोषी पाए जाने से पहले किसी को दोषी ठहराना खतरनाक चलन है।
मौलाना महमूद मदनी ने कहा कि हम अदालत से मीडिया ट्रायल पर रोक लगाने का भी आग्रह करेंगे। जो न केवल दुनिया में भारत की छवि खराब करता है, बल्कि देश की व्यवस्था का भी मजाक उड़ाता है। जमीयत के सेक्रेट्री मौलाना हकीमुद्दीन क़ासमी ने लखनऊ का दौरा किया, जहां उमर गौतम रिमांड पर हैं, इसके अलावा उन्होंने उमर गौतम परिवार से भी मुलाक़ात की है।
मौलाना महमूद असद मदनी ने यूपी सरकार की रवैय्ये पर सवाल उठाते हुए कहा कि सरकार सबके लिए बराबर होनी चाहिए. हम देखते हैं कि यति नरसिंह नंद जैसे लोग लगातार मुसलमानों को चोट पहुँचा रहे हैं और इस्लाम धर्म का अपमान कर रहे हैं, लेकिन उन पर सरकार कोई कार्रवाई नहीं कर रही है। जमीयत उलमा-ए-हिंद ने इस बाबत मुख्यमंत्री को एक पत्र लिखा है। (समाचार साभार द रिपोर्ट हिंदी)