Exclusive-तीन सगे भाइयों पर कुदरत का कहर है या करिश्मा

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आंखों से कुछ भी ना दिखाई देने के बाद भी इनके पास है बड़ा हुनर

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ईश्वर अल्लाह भगवान को हम चाहे जो भी पुकारें लेकिन अक्सर ये कहा जाता है कि ऊपर वाला जब किसी को देता है तो छप्पर फाड् कर देता है, अब हम आपको जो दिखाने जा रहें है उसे देख कर आप हैरान रह जाएंगे। तीन सगे भाइयों पर कुदरत ने कहर ढाया लेकिन फिर भी भाइयों ने हिम्मत नहीं हारी और कुदरत को इनकी हिम्मद व ज़ज़्बे के सामने झुकना पड़ा। इस रिपोर्ट में नज़र आम वाले ये तीनों भाई जन्म जात नाबीना (अंधे) हैं। सूरज का उजाला कभी ना देखने वाले इन सगे भाइयों ने जिंदगी की रौशनी पहचान लिया और आंख वालों को भी मात दे कर अपने हुनर को दुनिया के सामने पेश किया। नाबीना अर्थात बिना आंख वालों के साथ कुदरत ने इन तीनों भाइयों को ऐसा नायाब हुनर भी दिया है जो आँख वाले सही ढंग से नहीं कर पाते। ये तीनो भाई अपना और अपने परिवार का पेट पालने के लिए 12 घंटे पावरलूम (कपड़ा बुनाई) चलाते है, साथ ही इन कपड़ो में अलग अलग तरह की शानदार डिज़ाइनें भी बनाते है। नगर पालिका परिक्षेत्र में रहने वाले इन भाइयों के पास सर छुपाने की जगह तक नहीं है। अब सरकार के नुमाइंदो को अंधा कहा जाय या फिर उनको जिनको इनकी परेशानिया दिखाई नहीं देती है।


अम्बेडकरनगर जिले की टांडा तहसील जो विभिन्न तरह के कपड़ों की बुनाई के लिए पूरे देश मे मशहूर है, इसी शहर के मुमताज गंज में एक ऐसा परिवार भी रहता है जिस पर कुदरत ने कहर ढाया है। इस परिवार में तीन भाई है और ये तीनो भाई जन्म जात नाबीना (अंधे) है। पेट पालने के लिए इन तीनो भाइयो ने कभी हिम्मत नहीं हारी और न ही किसी के आगे हाथ फैलाया। कुदरत ने भी इन अंधे भाइयों का जज्बा देख इनको नायब हुनर भी दिया है। ये वो काम करते है जिसे आँख वाले भी ठीक ढंग से करने में गलती कर जाते है। ये तीनों नाबीना (अंधे) भाई बचपन से अपना और अपने परिवार का पेट पालने के लिए पावर लूम (कपड़ा बुनाई) चलाते है। पावर लूम चलाने में अगर ज़रा भी गलती हो जाय तो बड़ा नुकसान हो जाता है, पर ये अंधे भाई बड़ी ही सहजता से पावर लूम ही नहीं चलाते वरन दिखाई न देने के बावजूद कपडे में जिजाइन भी बनाते है जो हैरान करने वाला है।


अंधे होने के साथ गरीबी मुफलिसी के साथ किसी तरह अपना और अपने परिवार पेट पाल रहें है। सरकार ने तमाम ऐसी योजनाए ऐसे लोगों के लिए बनाई है, पर आज तक सरकार की कोई भी योजना इन अंधे भाइयों के दरवाजे तक नहीं पहुंची। इन भाइयो के पास रहने को घर नहीं, किसी तरह जहां लूम चलाते है वहीं बने छोटे से तीन सेड में रहते है, जिसमे खड़े होने की जगह तक नहीं है और अगर बारिस आ जाय तो इनके जान निकल जाती है, क्योकि बारिस में भीगने के सिवाय और कोई दूसरा रास्ता नहीं रहता। केंद्र सरकार की आवास योजना जब आई तो इनके चेहरों पर खुशी दौड़ गई और ये आवास के लिए अपना फ़ार्म ऑनलाइन भी करावा दिया और अधिकारीयों के दरवाजे पर माथा टेका, पर दो साल ढाई बीत जाने के बाद भी आज तक इन अंधे भाइयो का नाम लिस्ट में नहीं आया। जब हमने इनके परिवार से हालत जानना चाहा तो वो कुछ न बोल सकी पर उनके बहते आंसुओं ने सब कह दिया।सरकार ने बहुत सारी योजनाए ऐसे लोगों के लिए बनाई है और उन योजनाओ को पूरा करने के लिए अधिकारी भी नियुक्त किया गएँ है, पर येजनाएँ कैसी जो जरूरत मंदो तक नहीं पहुँच पाती।

बुनकर नगरी के नाम से मशहूर टाण्डा नगर पालिका परिक्षेत्र के मुमताजगंज मोहल्लाह निवासी जन्मजात तीनों भाई नाबीना भाइयों ने गरीबी को अपनी किस्मत में कर दुनिया मे जूझना शुरू किया। इनके जज़्बे को देख कुदरत भी झुकती नज़र आई और विभिन्न डियाजनों वाले कपड़ों को तैय्यार करने का ऐसा हुनर दिया कि आँख वाले भी चकित रह गए। अपना व अपने परिवार का पेट पालने के लिए आंख वालों की तरह काम कर रहे इन तीनों भाइयों पर सरकार थोड़ा भी तरस नहीं खा रही है जिसके कारण पूरा परिवार कुदरत के कहर के साथ साथ आँख वालों की भी उपेक्षा का शिकार बना हुआ है। हमारे सामज में अकसर नाबीना लोग हमें मिल जाते हैं लेकिन उनके आगे पीछे सेवा करने वाले लोग भी मौजूद रहते हैं लेकिन एक ही परिवार में तीन सगे भाइयों की की दुःख भारी जिंदगी को देख कर कोई इसे कुदरत का कहर कहता है तो कोई इसे कुदरत का करिश्मा भी कह रहा है। सामाजिक संस्था हेल्प प्वाइंट एनजीओ सहित पँख, हेल्पिंग हैंड, हेल्पिंग नेचर, सहयोग आदि संस्थाओं ने स्थानीय प्रशासन से इन परिवार को दैनिक जीवन व्यतीत करने के लिए आवश्यक सरकारी योजनाओं का लाभ अतिशीघ्र दिलाने की मांग किया है जिससे कुदरती कहर का शिकार हुआ ये परिवार दुनिया में थोड़ा आराम भी पा सके।

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2 thoughts on “Exclusive-तीन सगे भाइयों पर कुदरत का कहर है या करिश्मा”

  1. प्रिय पाठकों, सूचना न्यूज़ का ये पेज अभी ट्रायल में चल रहा है, कृपया अपना सुझाव 9839372709 पर व्हाट्सअप के माध्यम से दें। धन्यवाद

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