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होली पर्व से पहले होलाष्टक के समय में शुभ कार्य करने से उचित लाभ फल नहीं प्राप्त होता है। वरिष्ठ पत्रकार सुदीप शुक्ला के फेसबुक वॉल से ली गई पोस्ट के अनुसार होली पर्व के आठ दिन पूर्व होलाष्टक लगने से सभी तरह के शुभ कार्यों पर रोक लग जाएगी। शास्त्रों में मान्यता है कि होलाष्टक के दौरान किए जाने वाले शुभ कार्यों का उचित फल नहीं मिलता। इस मान्यता के चलते नामकरण संस्कार, जनेऊ संस्कार, गृह प्रवेश, विवाह संस्कार आदि नहीं किए जा सकेंगे। इस बार होलाष्टक 27 फरवरी से शुरू होकर होलिका दहन तक रहेगा।
शास्त्रीय मान्यता अनुसार हिन्दू पंचांग के फाल्गुन पूर्णिमा के आठ दिन पहले यानी अष्टमी से होलाष्टक शुरू हो जाता है, जो पूर्णिमा तक मनाया जाता है। इन आठ दिनों में किसी भी तरह के शुभ संस्कार करने की शास्त्रों में मनाही है। होलाष्टक का संबंध भगवान विष्णु के परम भक्त प्रहलाद और उनके पिता हिरण्यकश्यप से संबंधित है।
होलाष्टक के आठ दिनों में भक्त प्रहलाद को यातना दी गयी थी।
श्रीमद्भागवत कथा में भक्त प्रहलाद के चरित्र की व्याख्या की जाती है, जिसके अनुसार भगवान विष्णु से ईर्ष्या-द्वेष रखने वाले और स्वयं को भगवान कहलाने की इच्छा रखने वाले हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र प्रहलाद को यातना दी थी। प्रहलाद भगवान विष्णु के भक्त थे, वह हमेशा ‘श्री नारायण, नारायण, हरि – हरि’ भजने में ही सुख का अनुभव करते थे। भगवान की भक्ति न करने के लिए हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र को घोर यातना और मृत्युदंड तक दिया, लेकिन भगवान की कृपा से भक्त प्रहलाद हर बार जीवित बच गया। आखिर में हिरयण्कश्यप ने अपनी बहन होलिका, जिसे आग में भी नहीं जलने का वरदान प्राप्त था, की गोद में बिठाकर प्रहलाद को आग में भस्म करवाने की कोशिश भी की थी। आग में न जल सकने वाली होलिका तो जल गई मगर प्रहलाद बच गया। भक्त प्रहलाद को जिन आठ दिनों में घोर यातनाएं दी गई थीं उन आठ दिनों को अशुभ मानने की परंपरा सदियों से चल रही है, इसीलिए होलिका दहन के पहले के आठ दिनों में कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता। (साभार)

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