आलम खान एडिटर सूचना न्यूज़ की कलम से विशेष रिपोर्ट

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रूहानी इलाज़ के लिए अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त अति प्रसिद्ध दरगाह किछौछा में सूफी सुल्तान हज़रत सैय्यद मखदूम अशरफ जहाँगीर सिमनानी का आस्ताना है। उत्तर प्रदेश के जनपद अम्बेडकरनगर की तहसील टाण्डा व थाना बसखारी में किछौछा शरीफ के नाम से मशहूर दरगाह मौजूद है।

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सूफी सुल्तान मखदूम पाक बाबा के नाम से अतिप्रसिद्ध दरगाह 633 वर्षों से अधिक समय से आस्था का केंद्र बनी हुई है। मान्यता है कि भूत प्रेत जिन्न शैतान आदि की चपेट में आए लोगों का दरगाह किछौछा में रूहानी इलाज़ होता है तथा इस दरगाह पर लोग रोते हुए तो आते हैं मगर उनकी वापसी हंसते हुए होती है। धार्मिक बंधनों से मुक्त मखदूम साहब की इस प्राचीन दरगाह में बिना भेद भाव के सभी धर्म व जातियों के लोगों का रूहानी इलाज किया जाता है। मुख्य आस्ताना सामने बनी सहन पर भूत प्रेत व जिन्न की अदालतें भी लगती हैं जहाँ विभिन्न बलाओं से पीड़ित लोग बैठ कर अपनी फरियाद लगाते हैं।

भूत प्रेतों की उसी अदालत में नित नए-नए रूप भी देखने को मिलते हैं। आस्ताना से लग कर ही नीर शरीफ के नाम से मशहूर तालाब है जिसमें नहाने व उसकी मिट्टी को बदन पर लगाने तथा नीर शरीफ का पानी पीने से मरीजों को पूरी तरह से लाभ होने का दावा किया जाता है।

सहन आस्ताना अर्थात दरगाह का मुख्य स्थल के पास ही मखदूम पाक के समक्ष अधजला चिराग भी मिलता है। ऐसी मान्यता है कि घरों, दुकानों व प्रतिष्ठानों पर अगर भूत प्रेत जिन्न आदि का वास है तो इस चराग को जलाने मात्र से ही बुरी शक्तियां रफू चक्कर हो जाती हैं। काफी दिनों से परेशान मरीजों के लिए वरदान साबित हो रही दरगाह किछौछा शरीफ में जायरीनों का पूरे वर्ष तांता लगा रहता है। इस्लामिम माह के प्रत्येक प्रथम गुरुवार को नौचंदी के रूप में जाना जाता है और इस दिन श्रद्धालुओं की भीड़ बढ़ जाती है तथा इस्लामिक कैलेंडर के मोहर्रम माह में सात दिवसीय वार्षिक उर्स-ए-मखदूम अशरफ काफी धूमधाम से मनाया जाता है।

मोहर्रम माह की 23 तारीख को उर्स का आग़ाज़ होता है तथा 24 मोहर्रम को देश के कोने-कोने से आए फोकराओं द्वारा चादर चढ़ाई जाती है। 25 मोहर्रम को साहिबे सज्जादा सैय्यद हसीन अशरफ़ का जुलूस काफी धूमधाम व आतिशबाजियों के साथ किछौछा से दरहगाह आस्ताना पर आता है और सहन आस्ताना पर दुआ ख्वानी की जाती है।

इसी प्रकार से 25 मोहर्रम को साहिबे सज्जादा हजरत सैय्यद मोइनुद्दीन अशरफ़ (मोईन मियाँ) गागर की रस्म अदा करते हैं तथा प्राचीन वस्त्र (ख़िलका मुबारक) धारण कर खानकाह हुसैनिया अशरफिया से कव्वालियों व जुलूस की शक्ल में सहन आस्ताना पहुँच कर मौजूद श्रद्धालुओं व उनके परिजनों सहित विश्व शांति व कल्याण की दुआएं मांगते हैं।

उर्स की 27 व 28 तारीख को काफी महत्वपूर्ण माना जाता है।

27 मोहर्रम को आस्ताना मोतवल्ली व साहिबे सज्जादा सैय्यद मोहीउद्दीन अशरफ़ अपने आवास बसखारी से भारी जुलूस की शक़्ल आस्ताना आते हैं जिसमें सुरक्षा व्यवस्था काफी सख्त होती है। साहिबे सज्जादा सैय्यद मोहिउद्दीन अशरफ प्राचीन पवित्र स्थल लहद खाना में मखदूम पाक का प्राचीन पवित्र वस्त्र (ख़िलका मुबारक) धारण करते है और आस्ताना पर पहुंच कर विश्व कल्याण व शांति की दुआएं मांगते हैं। 

28 मोहर्रम को सरपरस्त साहिबे सज्जादा सैय्यद फखरुद्दीन अशरफ़ अपने आवास से प्रातः काल ही बड़ी सादगी से दरगाह पहुंच जाते हैं तथा शाम के समय उसी प्राचीन ख़िलका मुबारक को अपनी बदन पर पहन कर आस्ताना पहुंचते है और पुनः विश्व शांति व कल्याण के लिए रो-रो कर दुआएं मांगते हैं। इस दौरान प्राचीन वस्त्र को देखने के लिए जायरीनों व श्रद्धालुओ की काफी भीड़ होती

है।

दूसरी तरफ दरगाह में ही स्थित आस्ताना-ए-अशरफिया हसनिया सरकारे कला में भी उर्स मखदूम की धूम होती है जहां साहिबे सज्जादा सैय्यद शाह मोहम्मद अशरफ अशरफी-उल-जिलानी परचम कुशाई कर उर्स का शुभारंभ करते हैं तथा 27 व 28 मोहर्रम को विशेष वस्तुओं का दर्शन कराते हैं जिसमें कदम-ए-रसूल सल्ल., खातून-ए-जन्नत हज़रत फातिमा की रिदा (चादर) का टुकड़ा, हज़रत गौस पाक का कनटोप (टोपी), हज़रत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती का झुब्बा मुबारक सहित अन्य वस्तुओं का दर्शन हज़ारों श्रद्धालुओं को कराया जाता है तथा 28 मोहर्रम को विशेष दुआ का आयोजन होता है जिसमें शामिल हजारों लाखों लोग सब कुछ भूल कर एक ईश्वर अल्लाह से गिड़गिड़ा कर दुआएं मांगते हैं।

मुख्य आस्ताना पर दाखौल की विशेष रस्म अदा की जाती है जिसमें देश के कोने कोने से आए फोकराओं की शिकायत व उनकी मांगों को दरगाह मोतवल्ली व साहिबे सज्जादा सैय्यद मोहीउद्दीन अशरफ़ व सरपरस्त सज्जादानशीन सैय्यद फखरुद्दीन अशरफ संयुक्त रूप से सुनकर हल करते हैं और इसी के साथ वार्षिक उर्स का समापन होता है। रूहानी इलाज के लिए पीड़ित मरीज़ों का अलग-अलग पद्धति से इलाज होता है। मरीजों को चालीस दिन तक दरगाह में रहकर हाजिरी लगाने एवं नीर शरीफ में स्नान करने को चिल्ला कहते हैं तथा कई मरीजों को बीमारी दूर करने में महीनों भी लग जाते जाते हैं।

ऐतिहासिक स्थल दरगाह व आसपास के क्षेत्र को सुंदरीकरण व व्यवस्थित करने के लिए नगर पंचायत अशरफपुर किछौछा बड़ी सक्रियता से कार्य करती है। नगर पंचायत अशरफ पुर किछौछा द्वारा क्षेत्र में साफ सफाई, टैक्सी स्टैण्डों व मार्गों, पानी निकासी, स्वच्छ जल, हैण्डपम्प, शौचालय प्रकाश आदि की समुचित व्यवस्था की जाती है। दरगाह कमेटी द्वारा आस्ताना व आसपास के क्षेत्रों की देखभाल की जाती है और हाल ही में दरगाह इंतेजामिया कमेटी के कार्यों से असंतुष्ट लोगों द्वारा पीरजादगाने इंतेजामिया कमेटी का गठन किया गया और इस कमेटी की पहल पर दरगाह असताना पर जायरीनों से एलान कर उसूले जाने वाला चंदा बन्द कर दिया गया हालांकि कोई भी जायरीन दरगाह इंतेजामिया कमेटी या पीरजादगाने इंतेजामिया कमेटी को स्वेच्छा से चंदा दे सकते हैं। पीरजादगाने इंतेजामिया कमेटी ने नई पहल करते हुए दरगाह में आए जायरीनों की सुविधाओं की दिशा में सराहनीय कार्य किया जिसके तहत विषम परिस्तिथियों में जायरीनों को उनके घरों तक पहुंचने तथा किसी भी श्रद्धालु की दरगाह में मृत्यु हो जाने पर उनके शवों को वाहनों से उनके पैतृक घरों तक सुरक्षित भेजने का इंतज़ाम भी किया जाता है। वार्षिक उर्स के दौरान दरगाह व आसपास के क्षेत्रों में लंगर (भोजन) व निःशुल्क चिकित्सा की व्यवस्थाएं होती हैं। 

वार्षिक उर्स के दौरान देश के कोने-कोने से ही नहीं कई अन्य देशों से भी श्रद्धालु दरगाह पहुंच कर अपनी आस्था प्रकट करते हैं। दरगाह के लोग दूर दराज से आये जायरीनों श्रद्धालुओं का दिल से स्वागत करते हुए अथक प्रयास करते हैं कि मखदूम पाक के मेहमान के रूप में आए श्रद्धालुओं को किसी तरह की दिक्कत ना होने पाए। दरगाह पहुंचने के लिए लखनऊ व वाराणसी तक ही हवाई मार्ग की व्यवस्था है जहां से अम्बेडकरनगर के लिए ट्रेन व बस की सुविधाएं मौजूद है।

अकबरपुर रेलवे जंक्शन सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन है तथा अकबरपुर बस स्टेशन व रेलवे जंक्शन से लगातार बसखारी व दरगाह के लिए टैक्सी मिलती रहती है। बसखारी से मात्र दो-तीन किलोमीटर की दूरी पर ही दरगाह मखदूम अशरफ मौजूद है तथा बसखारी व दरगाह आस्ताना के बीच ई-रिक्शा की बहुयात है। बाहरहाल वर्षों वर्षों बीत जाने के बाद भी  मखदूम अशरफ पर श्रद्धालुओं के आने तथा बीमारियों के सही होने का सिलसिला बा-दसतूर जारी है।

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