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नहाय खाय के साथ चार दिवसीय छठ पूजा उत्सव शुरू, जानिए महत्त्व

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चार दिवसीय छठ पूजा की शुरुआत मंगलवार को नहाय खाय की रस्म के साथ हुई, बुधवार को खरना, गुरुवार सांय काल सूर्य देवता को अर्ध व शुक्रवार को उगते सूर्य को अर्ध्य देकर छठ पूजा सम्पन्न होगी।
छठ पूजा का पर्व सूर्य देव को धन्यवाद देने और उनके प्रति कृतज्ञता प्रकट करने के लिए मनाया जाता है। लोग इस दौरान सूर्य देव की बहन छठी मईया की भी पूजा करते हैं।


छठ पूजा प्रकृति को समर्पित पर्व है जिसमें सूर्यदेव और छठी मैया की पूजा होती है। यह पर्व चार दिनों तक चलता है जिसका आरंभ चतुर्थी तिथि से हो जाता है और समापन सप्तमी तिथि पर होता है। छठ पर्व पर व्रती कमर तक जल में प्रवेश कर सूर्यदेव को अर्घ्य देते है।
छठ मैया के बारे में कथा है कि यह ब्रह्माजी की मानस पुत्री हैं और सूर्यदेव की बहन हैं। छठ मैया को संतान की रक्षा करने वाली और संतान सुख देने वाली देवी के रूप में शास्त्रों में बताया गया है जबकि सूर्यदेव अन्न और संपन्नता के देवता है। इसलिए जब रवि और खरीफ की फसल कटकर आ जाती है तो छठ का पर्व सूर्य देव का आभार प्रकट करने के लिए चैत्र और कार्तिक के महीने में किया जाता है।
पर्व मुख्य रूप से षष्ठी तिथि को किया जाता है। लेकिन इसका आरंभ नहाय खाय से हो जाता है यानी छठ पर्व शुरुआत में पहले दिन व्रती नदियों में स्नान करके भात,कद्दू की सब्जी और सरसों का साग एक समय खाती है। दूसरे दिन खरना किया जाता है जिसमें शाम के समय व्रती गुड़ की खीर बनाकर छठ मैय्या को भोग लगाती हैं और पूरा परिवार इस प्रसाद को खाता है। तीसरे दिन छठ का पर्व मनाया जाता है जिसमें अस्त होते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है और चौथे दिन सप्तमी तिथि को उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर छठ पर्व को समापन किया जाता है।
इस वर्ष 05 नवम्बर को नहाय खाय की रस्म के साथ छठ पूजा की शुरुआत होती है और पूजा के पहले दिन, श्रद्धालु नदी या तालाब में स्नान करते हैं और केवल शुद्ध और सात्विक भोजन ग्रहण करते हैं।
दूसरे दिन 06 नवम्बर को खरना की रस्म है जिसमें व्रती दिन भर निर्जला उपवास रखते हैं। शाम को पूजा के बाद प्रसाद के रूप में खीर, रोटी और फल खाए जाते हैं।
तीसरे दिन 07 नवम्बर को संध्या अर्घ्य दिया जाता है जिसमें व्रती सूर्यास्त के समय नदी या तालाब के किनारे जाकर सूर्य देव को अर्घ्य देते हैं। यह छठ पूजा का सबसे महत्वपूर्ण दिन होता है।
छठ पूजा के चौथे व अंतिम दिन 08 नवम्बर को प्रातःकालीन अर्घ्य दिया जाता है जिसमें उगते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है, जिसके बाद व्रती अपना व्रत तोड़ते हैं और प्रसाद वितरण करते हैं।
छठ पूजा में भोग और प्रसाद बनाते समय साधारण नमक का प्रयोग न करें, सेंधा नमक ही डालें। भूलकर भी इस दौरान घर में शराब और मांसाहार नहीं आना चाहिए। इस दौरान नहाने के बाद घर की महिलाएं रोजाना नारंगी रंग का सिंदूर ही लगाएं। पूजा करते समय भगवान सूर्य और छठी माता को दूध जरूर अर्पित करें।
मान्यता है कि छठ पूजा का व्रत परिवार की खुशहाली और संतान की सुरक्षा के साथ अच्‍छी सेहत के लिए किया जाता है और इसमें व्रती महिलाओं को कई घंटों तक पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्‍य देना होता है।

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