अम्बेडकरनगर (नियाज तौहीद सिद्दीकी की कलम से) ‘दो गज सही ये मेरी मिलकियत तो है। ऐ मौत तूने मुझे ज़मींदार कर दिया।।’ इस शेर के मालिक डॉक्टर राहत इंदौरी के इन्तेकाल की खबर ने मानो शायरी की दुनिया को वीरान कर दिया। साहित्य जगत जहां पूरी तरह गम में डूबा हुआ है वहीं जिले के अदबी कस्बा जलालपुर ने तो जैसे अपने घर का कोई फर्द खो गया दिया हो क्योंकि राहत को राहत इंदौरी बनाने में जलालपुर की उर्वरा मिट्टी और पद्मश्री अनवर जलालपुरी का खास योगदान है। यहां पर राहत इंदौरी ने अपनी शायरी के शुरुवाती दौर की कई रातें और दिन गुजारे है यहां तक कि राहत इंदौरी ने उर्दू विषय से एमए बाबा बरुवा दास पीजी कालेज परुईया आश्रम से किया।राहत इंदौरी ने सब से पहला आइण्डिया मुशायरा जौनपुर के सबरहत में पढ़ा यहां के अदबी मंच पर इनको अनवर जलालपुरी ने लोगों से परिचित कराया । तभी तो जब जब जलालपुर ने राहत इंदौरी को आवाज दी वो यहां के मुशायरे में जरूर शामिल होते।जलालपुर का रामलीला मैदान इस बात का गवाह है जिस की गोद मे बैठ कर राहत इंदौरी ने अपनी शायरी पढ़ी। पद्मश्री अनवर जलालपुरी के पुत्र शाहकार जलालपुरी ने बताया कि राहत साहब शुरू के दिनों में जलालपुर में उन के घर हफ्ता दस दिन तक एक बार मे रुकते । जिले के आसपास जिलों में जब मुशायरे होते तो कई शायर जिन में राहत इंदौरी भी शामिल होते थे एक दिन पहले उन के घर आजाते और जीप या कोई दूसरी गाड़ी बुक करके मुशायरे में शामिल होते।शाहकार ने बताया कि राहत साहब के इन्तेकाल से अब्बू के बाद हम ने अपना एक और सरपरस्त खो दिया ।
मुशायरे के मंच के कलन्दर थे राहत
उलझे हुए बाल,शराबखानों को शर्मिंदा करती हुई नशीली आंखे, आवाज में गरज और खनक केअनोखे संगम को समेटे राहत इंदौरी की शख्सियत मुशायरा लूटने वाली थी। राहत इंदौरी मुशायरे की दुनिया के एक चलते फिरते विष्वविद्यालय थे।राहत ने शुरू से ही आम और खास सब को अपनी शायरी से चौकाया है सरकार और सिस्टम दोनों पर चोट भी समय समय पर किया।एक जगह वो लिखते है कि हम फकीरों के लिए है सारी दुनिया एक सी, हम जहां जाएंगे अपना घर उठा ले जाएंगे।उन का ये शेर भी बहुत नाजुक है कि उस की याद आयी है सांसों जरा आहिस्ता चलो, धड़कनों से भी इबादत में खलल पड़ता है। उन की यह पंक्तियां भी हमेशा याद रहे गी किसूरज, सितारे, चाँद मेरे साथ में रहें जब तक तुम्हारे हाथ मेरे हाथ में रहें शाखों से टूट जाए वो पत्ते नहीं हैं हम आंधी से कोई कह दे की औकात में रहें| राहत का यह मशवरा अमल करने लायक है कि दोस्ती जब किसी से की जाय दुश्मनों की भी राय ली जाये।