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प्राचीन औद्योगिक बुनकर नगरी टाण्डा के तलवापार में स्थित प्राचीन दरगाह हज़रत मौलाना हक्कानी शाह रह. का 245 वां वार्षिक उर्स व मेला रविवार को पूरी शान-व-शौकत तथा श्रद्धा पूर्वक सकुशल सम्पन्न हुआ। उर्स मेला में अकीदत मंदों की काफी भीड़ उमड़ी थी जिसमें महिलाओं की अत्याधिक संख्या रही। टाण्डा नगर पालिका अध्यक्ष रेहाना अंसारी के प्रतिनिधि डॉक्टर दस्तगीर अंसारी ने भी दरगाह पर हाजिरी लगाते हुए मेला का जायजा लिया।अलीगंज थाना प्रभारी इंस्पेक्टर रामचन्द्र सरोज, एसएसआई हीरालाल यादव अन्य पुलिस कर्मियों के सहारे लगातार मेला को व्यवस्थित करने में जुटे रहे। उर्स के दौरान पूरी श्रद्धा के साथ ग़ुस्ल मुबारक की रस्म अदा कर कुरानख्वानी का इंतजाम किया गया। टाण्डा नगर क्षेत्र के विभिन्न मोहल्लों से जुलूस की शक्ल में चादर मुबारक हज़रत हक्कानी शाह रह.की खिदमत में वेश की गया। एआईएमआईएम के प्रदेश सचिव इरफान पठान ने पार्टी की तरफ से चादरपोशी की रस्म अदा किया। नगर क्षेत्र में उर्स व मेला कार्यक्रम को लेकर टाण्डा कोतवाली पुलिस भी पूरी तरह सतर्क नज़र आई। उप जिलाधिकारी महेंद्र पाल सिंह व पुलिस क्षेत्राधिकारी अमर बहादुर स्वयं उर्स मुबारक व मेला की प्रत्येक गतिविधियों पर नज़र बनाये हुए थे। तलवापार में स्थित प्राचीन दरगाह हजरत हक्कानी शाह रह. हिन्दू मुस्लिम एकता की जीती जागी मिसाल है जहां प्रत्येक धर्म के लोग बिना भेदभाव के अपनी आस्था के अनुसार आते हैं।
(सैय्याद मो.समर चिश्ती की वाल से)
हजरत मौलाना फजले हक मियां हककानी शाह रहमतुल्लाह अलेह कस्बा अमेठी के रहने वाले थे जो लखनऊ से कुछ किलोमीटर की दूरी पर है कस्बा अमेठी में शाही जमाने से ही दो खानदान आबाद थे एक हजरत मखदूम शाह बहारूलहक का और दूसरा हजरत बंदगी शाह का था। हजरत मौलाना हक्कानी शाह, हजरत बंदगी शाह की औलाद से हैं। बचपन ही से दिल व दिमाग जाहरी व बातनी तालीम की तरह मायल था। दिन रात यादें इलाही में रहना आपका मशगला था बिला तफरीक मजहब व मिल्लत आप गरीब व लाचार ओ मजदूरों की मदद करते थे और कौमी एकता का दर्स देना और मजहबी इस्लाम के बताए हुए रास्ते पर चलने और इंसान से मोहब्बत करने की तालीम देते थे आपकी परहेज गारी का चर्चा दूर-दूर तक फैल गया कहते हैं एक बार आपको नवाब शुजाउद्दौला ने फैजाबाद में एक मुजरिम के शरअी फैसले के लिए बुलाया और शाही मेहमान नवाजी के साथ रखा मामला कुछ उलझा हुआ था आपने नवाब से पूछा कि क्या आपके पास दो गवाह है जिन्होंने मुजरिम को जुर्म करते देखा नवाब ने कहा नहीं इसी पर नवाब से कुछ ना इत्तेफाकी हुई और नवाब ने कहा कि अगर आप साहिबे इल्म हैं तो आज से मेरी हुकूमत का दाना पानी आप पर जायज नहीं हजरत हक्कानी शाह ने नवाब से कहा कि आप की रियासत का दाना पानी ही क्या तुम्हारी रियासत पर बैठना भी गवारा नहीं इतना कहकर आप पूरब की जानिब चल पड़े 20 कोस का सफर तीन-चार दिन में तय कर लिया और टांडा पहुंचे बाबा हारून रशीद की मजार देखकर वहीं रुक गए लेकिन फिर वहां उनको हुक्म हुआ कि यहां से थोड़ी दूर जाकर क्याम करें जहां लोगों को आपकी जरूरत है और हजरत हककानी शाह यहां आए जो जगह आज तलवापार के नाम से मशहूर है जिस जमाने में हजरत हककानी चाहने टांडा में कदम रखा उस वक्त ये गैर आबाद था हजरत एक पेड़ के नीचे बैठ गए जहां हरियाली थी और तालाब था और खजूरों के झुरमुट थे लेकिन बैठने से पहले पूछा की ये जगह नवाब शुजाउद्दौला की हुकूमत में तो नहीं लोगों ने बताया यह जगह दिल्ली के बादशाह के मातहत है और इसके मैनेजर राजा मोहम्मद अली मोकर्र है तब आपने क्याम किया इस तरह टांडा की सर जमी एक बुजुर्ग हस्ती की दौलत से मालामाल हुई जिसे हम सब आज बुनकर नगरी के नाम से जानते हैं करीबन या 12 वीं सदी हिजरी का जमाना था लोगों का कहना है वह आराजी जो राजा साहब ने हक्कानी साहब को दी थी वह लगभग 50 बीघा थी जो बागात और खजूरों के झुरमुट थे राजा मोहम्मद अली ने अकीदत के तौर पर हजरत के लिए एक खूबसूरत मकान बनवाना चाहा तो आपने मना कर दिया बस एक छोटा सा हुजरा बनवाया जिसमें आप इबादत इलाही में मसरूफ रहा करते थे आज हजरत हककानी शाह की मजार व आस्ताना हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई सभी धर्मों के लोगों के लिए उनकी परेशानियों से छुटकारा पाने के लिए एक मरकज बना हुआ है हजरत के आस्ताने पर मुल्क में अमन व चैन की दुआएं सामूहिक तौर पर मांगी जाती हैं हजरत हककानी शाह की दुआओं और उनके फैजान से शहर टांडा हाफिज ओं का शहर भी कहा जाता है शहर टांडा औलिया इकराम की शख्सियत से मालामाल है जैसे हजरत इमामुद्दीन औलिया कस्बा छोटी बाजार हजरत इबाद्दीन कस्बा जामा मस्जिद हजरत दाता गौहर अली शाह और कई औलिया मौजूद हैं।

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